B.Sc. 2nd Year Subject-Physics Paper-विद्युती की चुंबकत्व और विद्युत चुंबकीयतरंग NOTE(1) विद्युत फ्लक्स- विद्युत फ्लक्स (Electric Flux) किसी सतह के माध्यम से विद्युत क्षेत्र (Electric Field) की कुल संचारिता को दर्शाता है। इसे गणितीय रूप से विद्युत क्षेत्र और सतह के बीच कोणीय संबंध को ध्यान में रखते हुए व्यक्त किया जाता है। विद्युत फ्लक्स की परिभाषा:"विद्युत फ्लक्स किसी निश्चित सतह पर विद्युत क्षेत्र की कुल संचारिता को मापता है। यह उस सतह पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता और उस क्षेत्र की दिशा पर निर्भर करता है।" गणितीय रूप से, विद्युत फ्लक्स Φ𝐸 को निम्नलिखित सूत्र से व्यक्त किया जाता है: Φ𝐸 = ∫ E⋅ dA यहाँ: Φ𝐸 =विद्युत फ्लक्स, E=विद्युत क्षेत्र,dA=सतह के एक अद्वितीय क्षेत्रीय तत्व का वेक्टर (जो सतह की दिशा को दर्शाता है) ⋅ = डॉट उत्पाद (जिसे और के बीच कोणीय संबंध को व्यक्त करने के लिए उपयोग किया जाता है यदि विद्युत क्षेत्र और सतह पर एक ही दिशा में होते हैं, तो फ्लक्स अधिक होता है, और यदि वे एक दूसरे के प्रति समकोण (perpendicular) होते हैं, तो फ्लक्स न्यूनतम होता है।उदाहरण: यदि एक समतल सतह पर एक समान विद्युत क्षेत्र होकर उस सतह से होकर प्रवाहित हो रहा है, तो विद्युत फ्लक्स को साधारणतया इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है: Φ𝐸 = EAयह केवल उस स्थिति में सही है जब विद्युत क्षेत्र और सतह के बीच कोण 0° हो (यानी, क्षेत्र रेखाएँ सतह के समांतर हों)। NOTE (2) लॉरेंज बल- लॉरेंज बल (Lorentz Force) वह बल है जो एक आवेशित कण (charged particle) पर विद्युत क्षेत्र (Electric Field) और चुम्बकीय क्षेत्र (Magnetic Field) के प्रभाव से उत्पन्न होता है। यह बल एक वेक्टर राशि होती है और इसका निर्धारण कण की गति, आवेश और पर्यावरणीय विद्युत और चुम्बकीय क्षेत्रों के आधार पर किया जाता है। लॉरेंज बल का सूत्र निम्नलिखित है:F= q(E+ v×B) यहाँ: F= लॉरेंज बल (Force),q=आवेशित कण का आवेश ,E=विद्युत क्षेत्र,v= कण की गति ,B=चुम्बकीय क्षेत्र ,x=क्रॉस उत्पाद लॉरेंज बल के दो घटक: 1.विद्युत बल (Electric Force): यह बल उस कण पर विद्युत क्षेत्र के प्रभाव से उत्पन्न होता है। इसका सूत्र है-FE = qE यह बल कण के आवेश के अनुपात में होता है और यह विद्युत क्षेत्र की दिशा में कार्य करता है। 2.चुम्बकीय बल (Magnetic Force): यह बल उस कण पर चुम्बकीय क्षेत्र के प्रभाव से उत्पन्न होता है, जो कण की गति v और चुम्बकीय क्षेत्र Bके बीच क्रॉस उत्पाद के रूप में व्यक्त किया जाता है। इसका सूत्र है:FB=q(v×B) यह बल कण की गति और चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के प्रति लंबवत (perpendicular) होता है और इसकी तीव्रता कण की गति और चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता पर निर्भर करती है। विशेषताएँ: विद्युत बल (Electric force) कण को सीधे उस दिशा में प्रभावित करता है, जिसमें विद्युत क्षेत्र होता है। चुम्बकीय बल (Magnetic force) कण को उस दिशा में प्रभावित करता है, जो कण की गति और चुम्बकीय क्षेत्र के बीच समकोण पर होती है। इसका मतलब यह है कि कण की गति के साथ यह बल काम नहीं करता है, बल्कि गति के 90° पर कार्य करता है। जब कण विद्युत और चुम्बकीय दोनों क्षेत्रों से प्रभावित हो, तो उसका कुल बल दोनों बलों का योग होगा। लॉरेंज बल का उपयोग विद्युत चुम्बकीय सिद्धांत (Electromagnetic Theory) में किया जाता है और यह विशेष रूप से उस समय महत्वपूर्ण होता है जब आवेशित कणों की गति और विद्युत-चुम्बकीय क्षेत्र दोनों का प्रभाव महत्वपूर्ण हो, जैसे कि चुम्बकीय उत्प्रेरण (Magnetic Induction) या प्लाज्मा भौतिकी (Plasma Physics) में। NOTE(3)विद्युत नेटवर्क- वह संरचना है जिसमें विभिन्न विद्युत अवयव (components) जैसे रेजिस्टर (resistors), संधारित्र (capacitors), प्रेरक (inductors), और अन्य विद्युत उपकरण आपस में जुड़े होते हैं ताकि विद्युत ऊर्जा का प्रवाह, नियंत्रण, और वितरण किया जा सके। विद्युत नेटवर्क का उद्देश्य विद्युत शक्ति का प्रबंधन करना और विभिन्न विद्युत अवयवों को इस तरह से जोड़ना होता है कि ऊर्जा का उपयोग कुशलतापूर्वक किया जा सके। विद्युत नेटवर्क के मुख्य अवयव: 1. रेजिस्टर : विद्युत अवरोधक होते हैं, जो विद्युत प्रवाह को नियंत्रित करने का कार्य करते हैं। ये विद्युत शक्ति को गर्मी के रूप में परिवर्तित करते हैं। 2. संधारित्र : ये विद्युत ऊर्जा को संग्रहीत करने का कार्य करते हैं और समय के साथ विद्युत प्रवाह को स्थिर बनाए रखने में मदद करते हैं। 3. प्रेरक : ये विद्युत क्षेत्र के निर्माण के कारण विद्युत प्रवाह में परिवर्तन के खिलाफ प्रतिरोध उत्पन्न करते हैं। ये ऊर्जा को चुंबकीय रूप में संग्रहित करते हैं। 4. स्विच : ये उपकरण विद्युत प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए उपयोग किए जाते हैं। स्विच के माध्यम से नेटवर्क में विद्युत प्रवाह को चालू या बंद किया जा सकता है। 5. स्रोत : यह विद्युत ऊर्जा का उत्पादन करते हैं। स्रोतों में बैटरी, जनरेटर, या कोई अन्य विद्युत शक्ति आपूर्ति शामिल हो सकती है। 6. तार : ये विद्युत नेटवर्क में विभिन्न अवयवों के बीच कनेक्शन स्थापित करने के लिए उपयोग किए जाते हैं। ये कच्चा तार (conductor) होते हैं जिनमें विद्युत प्रवाह आसानी से हो सकता है। विद्युत नेटवर्क के प्रकार: 1.सरल विद्युत नेटवर्क** (Simple Electric Network): इसमें केवल कुछ अवयव होते हैं, जो एक साधारण संधारित्र, रेजिस्टर, या प्रेरक से जुड़े होते हैं। इनका उपयोग छोटे उपकरणों में किया जाता है। 2.विभाजन नेटवर्क** (Divided Networks): - इन नेटवर्कों में विद्युत प्रवाह को विभिन्न मार्गों से विभाजित किया जाता है। उदाहरण के लिए, घरों में विद्युत नेटवर्क के कई हिस्से होते हैं (जैसे लाइटिंग, पंखे, और उपकरण)। 3.धारा और दबाव नेटवर्क** (Series and Parallel Networks): धारा नेटवर्क इस प्रकार के नेटवर्क में अवयव एक के बाद एक जुड़े होते हैं, जिससे पूरे नेटवर्क में एक समान धारा प्रवाहित होती है। दबाव नेटवर् इस प्रकार के नेटवर्क में अवयव समानांतर रूप से जुड़े होते हैं, जिससे विभिन्न भागों में विभिन्न धाराएँ प्रवाहित हो सकती हैं। विद्युत नेटवर्क के कार्य: विद्युत ऊर्जा का वितरण: विद्युत नेटवर्क का मुख्य कार्य विद्युत ऊर्जा को उत्पत्ति स्थल से उपयोग स्थल तक पहुँचाना होता है। विद्युत प्रवाह का नियंत्रण: नेटवर्क के अवयवों के माध्यम से विद्युत प्रवाह को नियंत्रित करना और आवश्यकतानुसार इसे बढ़ाना या घटाना। शक्ति की कुशलता: नेटवर्क के तत्वों का चयन इस प्रकार किया जाता है कि ऊर्जा का अधिकतम उपयोग हो और नुकसान कम से कम हो। विद्युत आपूर्ति की स्थिरता: विद्युत नेटवर्क को इस तरह से डिजाइन किया जाता है कि विद्युत आपूर्ति में कोई व्यवधान न आए और विभिन्न उपकरणों को सही समय पर ऊर्जा मिल सके। उदाहरण: घरेलू विद्युत नेटवर्क: घरों में विभिन्न विद्युत उपकरणों को जोड़ने वाले नेटवर्क का उदाहरण है, जैसे लाइट्स, पंखे, और अन्य घरेलू उपकरण। यह एक पैरेलल नेटवर्क होता है। औद्योगिक विद्युत नेटवर्क: उद्योगों में बड़े उपकरणों और मशीनों को जोड़ने वाला नेटवर्क, जो अक्सर अधिक जटिल और उच्च शक्ति वाले होते हैं। विद्युत वितरण नेटवर्क: यह नेटवर्क पावर स्टेशनों से विभिन्न स्थानों तक बिजली को वितरित करने का कार्य करता है। इसमें ट्रांसमिशन लाइनें, सब-स्टेशन्स, और वितरण लाइनों का एक जाल होता है। निष्कर्ष: विद्युत नेटवर्क विभिन्न अवयवों का एक संयोजन है, जो विद्युत ऊर्जा के प्रवाह, वितरण, और नियंत्रण में मदद करता है। ये नेटवर्कों का डिज़ाइन और कार्यक्षमता बिजली की कुशल आपूर्ति और उपयोग के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। NOTE(4)अध्यारोपण का सिद्धांत अध्यारोपण का सिद्धांत (Theory of Superposition) भौतिकी और गणित में एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है, जिसका उपयोग विभिन्न प्रकार की तरंगों या बलों के संयोजन (combination) को समझने के लिए किया जाता है। यह सिद्धांत यह बताता है कि अगर कोई प्रणाली विभिन्न प्रभावों (जैसे विद्युत क्षेत्र, गुरुत्वाकर्षण बल, ध्वनि तरंगें, आदि) से प्रभावित हो रही हो, तो प्रत्येक प्रभाव को अलग-अलग विश्लेषण किया जा सकता है और अंत में इन प्रभावों को जोड़कर उस प्रणाली पर कुल प्रभाव का निर्धारण किया जा सकता है। अध्यारोपण का सिद्धांत (Superposition Principle) का सामान्य रूप: इस सिद्धांत के अनुसार, किसी प्रणाली पर कुल प्रभाव (जैसे बल, विद्युत क्षेत्र, ध्वनि, आदि) प्रत्येक व्यक्तिगत प्रभाव का योग होता है। यानी, जब एक से अधिक प्रभाव एक साथ कार्य कर रहे होते हैं, तो उनका संयुक्त प्रभाव उन सभी प्रभावों के स्वतंत्र प्रभावों का योग होता है। सिद्धांत को सरलता से समझने के लिए, इसे निम्नलिखित रूप में व्यक्त किया जा सकता है: कुल प्रभाव=प्रभाव 1+प्रभाव 2+प्रभाव 3+… अध्यारोपण का सिद्धांत का उपयोग: 1.विद्युत क्षेत्र और बलों में: विद्युत क्षेत्र में यदि कई आवेशित कण होते हैं, तो किसी विशिष्ट बिंदु पर विद्युत क्षेत्र को प्रत्येक कण से उत्पन्न विद्युत क्षेत्र के योग के रूप में पाया जाता है। इसी तरह, यदि कई बल एक ही कण पर कार्य कर रहे हों, तो उस कण पर कुल बल सभी बलों के योग के रूप में होता है। 2.तरंगों में: ध्वनि तरंगों, प्रकाश तरंगों या अन्य प्रकार की तरंगों में, यदि दो या दो से अधिक तरंगें एक साथ मिलती हैं, तो वे एक दूसरे को प्रभावित करती हैं। अध्यारोपण का सिद्धांत इस स्थिति में भी लागू होता है, यानी कुल परिणाम इन तरंगों के प्रभावों का योग होता है। इसे "सुपरपोज़िशन" कहते हैं, जहाँ दो या अधिक तरंगें मिलकर एक नई तरंग का निर्माण करती हैं । 3.गुरुत्वाकर्षण बल में: अगर एक कण पर कई गुरुत्वाकर्षण बल कार्य कर रहे हों, तो कुल बल इन बलों का योग होगा। जैसे, पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य का एक कण पर संयुक्त गुरुत्वाकर्षण प्रभाव उन सभी बलों के योग के रूप में व्यक्त किया जा सकता है। उदाहरण:विद्युत क्षेत्र: मान लीजिए, दो अलग-अलग सकारात्मक आवेश दो बिंदुओं पर स्थित हैं। किसी तीसरे बिंदु पर इन दोनों आवेशों के कारण उत्पन्न होने वाला विद्युत क्षेत्र कुल विद्युत क्षेत्र के रूप में दोनों आवेशों से उत्पन्न क्षेत्र का योग होगा: अध्यारोपण का सिद्धांत के अपवाद: अध्यारोपण का सिद्धांत कुछ स्थितियों में लागू नहीं होता, खासकर जब प्रभाव एक दूसरे के साथ परस्पर बातचीत करते हैं और उनका संयुक्त प्रभाव मात्र उनके व्यक्तिगत प्रभावों के योग के बराबर नहीं होता। उदाहरण के लिए: 1.गैर-लिनियर प्रणालियाँ: यदि कोई प्रभाव गैर-लिनियर है (जैसे किसी रासायनिक प्रतिक्रिया में), तो अध्यारोपण सिद्धांत लागू नहीं होताl इस स्थिति में, प्रभावों का योग वास्तविक परिणाम का सही प्रतिनिधित्व नहीं करेगा। 2.गुह्य प्रभाव (Quantum Effects): क्वांटम यांत्रिकी में भी अध्यारोपण का सिद्धांत हमेशा लागू नहीं होता, क्योंकि क्वांटम प्रणाली में कणों का व्यवहार कापलिंग और अन्य जटिलताओं से प्रभावित हो सकता है। निष्कर्ष: अध्यारोपण का सिद्धांत एक शक्तिशाली उपकरण है, जिसका उपयोग हम विभिन्न प्राकृतिक और भौतिक प्रक्रियाओं के विश्लेषण में कर सकते हैं। यह सिद्धांत विशेष रूप से तब उपयोगी होता है जब विभिन्न प्रभाव स्वतंत्र रूप से एक दूसरे पर कार्य कर रहे हों। हालांकि, इसमें कुछ अपवाद भी हैं, जिनमें प्रभावों के परस्पर संवाद और जटिलताएँ शामिल हैं। NOTE(5)चुंबकीय बल चुंबकीय बल (Magnetic Force) वह बल है जो एक आवेशित कण (charged particle) पर चुम्बकीय क्षेत्र (Magnetic Field) के प्रभाव से उत्पन्न होता है। यह बल आवेशित कण की गति, चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता और दिशा पर निर्भर करता है। चुंबकीय बल हमेशा उस कण की गति और चुम्बकीय क्षेत्र के बीच 90° के कोण पर कार्य करता है, और इसे कण की गति के दिशा में कोई कार्य नहीं होता है, बल्कि यह केवल कण की दिशा को मोड़ता है। चुंबकीय बल का सूत्र:चुंबकीय बल का गणितीय रूप निम्नलिखित है:F=q(v×B) f=चुंबकीय बल,q=कण का आवेश,v=कण की गति ,B=चुम्बकीय क्षेत्र चुंबकीय बल की विशेषताएँ: 1.दिशा: चुंबकीय बल कण की गति और चुम्बकीय क्षेत्र के बीच समकोण (perpendicular) होता है। यदि कण की गति 𝑣⃗vऔर चुम्बकीय क्षेत्र Bके बीच 90° का कोण है, तो चुंबकीय बल का अधिकतम मान होगा। 2.तीव्रता: चुंबकीय बल की तीव्रता कण के आवेश q, कण की गति 𝑣और चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता 𝐵पर निर्भर करती है। इसका अधिकतम मान तब होगा जब कण की गति और चुम्बकीय क्षेत्र के बीच 90° का कोण हो। F=qvB 4.कण की दिशा में कोई कार्य नहीं: चुंबकीय बल कण की गति की दिशा में कोई कार्य नहीं करता, क्योंकि यह बल हमेशा कण की गति और चुम्बकीय क्षेत्र के बीच समकोण पर होता है। इसलिए, यह कण की गति की तीव्रता को प्रभावित नहीं करता, केवल उसकी दिशा को बदलता है। 5.लंबवत बल: चुंबकीय बल हमेशा कण की गति और चुम्बकीय क्षेत्र के बीच लंबवत होता है, और इससे कण की परिपथ घुमती है, जैसे कि किसी कण का घूर्णन या अर्धवृत्तीय मार्ग बन सकता है। चुंबकीय बल का उदाहरण: कुण्डल में धारा और चुंबकीय क्षेत्र: जब एक चालक तार (conductor) में धारा बहती है और वह चुंबकीय क्षेत्र में स्थित होता है, तो उस पर चुंबकीय बल कार्य करता है। इसे "लॉरेन्ज बल" भी कहा जाता है। यह बल चालक के अंदर धारा को प्रभावित करता है और यह उसे एक निश्चित दिशा में धकेलता है। चुंबकीय बल का कार्य: चुंबकीय बल का मुख्य कार्य कण की दिशा को मोड़ना है, ताकि कण चुंबकीय क्षेत्र के साथ गोलाकार या अर्धवृत्तीय मार्ग पर गति करें। उदाहरण के लिए, यदि एक कण एक चुम्बकीय क्षेत्र में प्रवाहित हो रहा है, तो उसका मार्ग एक वृत्त के आकार का होगा, क्योंकि चुंबकीय बल उसकी गति की दिशा को निरंतर बदलता रहता है। निष्कर्ष: चुंबकीय बल एक अत्यंत महत्वपूर्ण भौतिक बल है, जो विद्युत चुम्बकीय (electromagnetic) परिघटनाओं की समझ के लिए जरूरी है। यह आवेशित कणों की गति और दिशा को प्रभावित करता है और इसका उपयोग विभिन्न तकनीकी अनुप्रयोगों में किया जाता है, जैसे जनरेटर, मोटर्स, और साइक्लोट्रॉन में। NOTE(6)विद्युत बल विद्युत बल (Electric Force) वह बल है जो दो आवेशित कणों के बीच विद्युत क्षेत्र (Electric Field) के कारण उत्पन्न होता है। यह बल कणों के आवेशों (charges) की तीव्रता और उनके बीच की दूरी पर निर्भर करता है। विद्युत बल का नियम कुलोंम्ब का नियम द्वारा व्यक्त किया जाता है, जो बताता है कि दो स्थिर (static) आवेशित कणों के बीच विद्युत बल उनके आवेशों के गुणांक के समानुपाती और उनके बीच की दूरी के वर्ग के विपरीत अनुपाती होता है। विद्युत बल का गणितीय रूप: कुलोंम्ब का नियम निम्नलिखित रूप में व्यक्त किया जाता है:F=Kelq1q2/r2l F = विद्युत बल,ke= कुलोंम्ब का स्थिरांक,q1और q 2= दो कणों के आवेश,r = दोनों कणों के बीच की दूरी विद्युत बल की विशेषताएँ: 1.आकर्षण या विकर्षण: यदि दो कणों के आवेश समान होते हैं (दोनों सकारात्मक या दोनों नकारात्मक), तो वे एक-दूसरे को विकर्षित (repel) करते हैं। यदि एक कण का आवेश सकारात्मक और दूसरे का नकारात्मक होता है, तो वे एक-दूसरे को आकर्षित (attract) करते हैं। 2.दूरी पर निर्भरता: विद्युत बल कणों के बीच की दूरी r के वर्ग के विपरीत अनुपाती होता है। इसका मतलब है कि यदि दो कणों के बीच की दूरी दोगुनी हो जाती है, तो बल चार गुना कम हो जाएगा। 3.आवेश की तीव्रता पर निर्भरता: विद्युत बल कणों के आवेशों के गुणांक के समानुपाती होता है। इसका मतलब है कि यदि एक कण का आवेश दोगुना हो जाए, तो विद्युत बल भी दोगुना हो जाएगा। 4.दिशा: विद्युत बल का वेक्टर रूप होता है, यानी यह किसी विशेष दिशा में कार्य करता है। दो समान आवेशों के बीच बल एक-दूसरे से दूर (विकर्षण) होता है, और विपरीत आवेशों के बीच बल एक-दूसरे की ओर (आकर्षण) होता है। विद्युत बल का उदाहरण: 1.दो समान आवेशों के बीच बल: यदि दो कणों के आवेश समान (दोनों सकारात्मक या दोनों नकारात्मक) होते हैं, तो वे एक-दूसरे को विकर्षित करते हैं। उदाहरण के लिए, दो समान सकारात्मक आवेशित बिंदु कणों के बीच बल उनका विद्युत बल होगा जो उन्हें एक-दूसरे से दूर खींचेगा। 2.दो विपरीत आवेशों के बीच बल: यदि एक कण का आवेश सकारात्मक और दूसरे का नकारात्मक होता है, तो वे एक-दूसरे को आकर्षित करेंगे। यह बल एक-दूसरे के बीच आकर्षण का कारण बनेगा। विद्युत बल का कार्य: विद्युत बल का कार्य एक कण को किसी विशेष दिशा में गति देने या उसकी स्थिति बदलने के रूप में होता है। यदि दो आवेशों के बीच विद्युत बल उत्पन्न हो, तो यह बल कणों को एक-दूसरे की ओर या उनसे दूर धकेलने का कारण बन सकता है। निष्कर्ष: विद्युत बल एक मूलभूत भौतिक बल है जो आवेशित कणों के बीच कार्य करता है। यह बल बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि यह विद्युत और चुंबकीय परिघटनाओं के पीछे का कारण होता है। कुलोंम्ब का नियम विद्युत बल की गणना करने के लिए आधार है और इसका उपयोग अनेक भौतिक और इंजीनियरिंग प्रणालियों में किया जाता है। NOTE(7) एक विद्युत परिपथ की प्रति बड़ा से क्या तात्पर्य है रैखिक प्रतिबद्ध किसे कहते हैं 1. विद्युत परिपथ की प्रति बड़ा (Electric Circuit's Per Unit) से क्या तात्पर्य है? "प्रति बड़ा" (Per Unit) एक मानक विधि है जिसका उपयोग विद्युत परिपथों (electrical circuits) और विद्युत ऊर्जा प्रणालियों में किया जाता है। इसमें विभिन्न भौतिक मात्राओं (जैसे वोल्टेज, करंट, शक्ति, आदि) के माप को एक सामान्यीकृत प्रणाली में दर्शाया जाता है, जो संख्यात्मक मानों के रूप में होती है। इसका उद्देश्य इन मात्राओं को परिपथ या प्रणाली के संदर्भ में सरल और तुलनात्मक तरीके से व्यक्त करना होता है। प्रति बड़ा प्रणाली में किसी विद्युत परिपथ में विभिन्न तत्वों (जैसे रेजिस्टर, प्रेरक, संधारित्र) की क्षमता, वोल्टेज या करंट को एक आधार मान (reference value) के अनुसार सामान्यीकृत किया जाता है। इससे यह फायदा होता है कि पूरे परिपथ का विश्लेषण आसान हो जाता है, विशेष रूप से उच्च वोल्टेज, उच्च करंट और बड़े विद्युत पावर सिस्टमों के संदर्भ में। उदाहरण: यदि किसी प्रणाली का वोल्टेज 1 प्यू (per unit) है, तो इसका मतलब यह है कि वोल्टेज उस परिपथ में निर्धारित मानक वोल्टेज के बराबर है। 2. रैखिक प्रतिबद्ध (Linear Resistance) किसे कहते हैं? "रैखिक प्रतिबद्ध" (Linear Resistance) वह स्थिति होती है जब विद्युत परिपथ में रेजिस्टर (resistor) का प्रतिरोध एक रैखिक रूप से (linearly) बदलता है, यानी इसमें वोल्टेज और करंट के बीच एक सरल और सीधा संबंध होता है। रैखिक रेजिस्टर वह रेजिस्टर होते हैं जिनका ओम का नियम (Ohm's Law) के अनुसार व्यवहार होता है, जो कहता है:V=I⋅R V= वोल्टेज,I=करंट,R= प्रतिरोध यदि प्रतिरोध रैखिक होता है, तो इसका मतलब है कि वोल्टेज और करंट के बीच अनुपात हमेशा स्थिर रहता है। जैसे-जैसे वोल्टेज बढ़ता है, करंट भी सीधे उसी अनुपात में बढ़ता है, और यह संबंध एक सीधी रेखा (linear relationship) के रूप में व्यक्त किया जाता है। निष्कर्ष: 1.प्रति बड़ा प्रणाली विद्युत परिपथों के विश्लेषण में उपयोग की जाती है, जिससे विभिन्न विद्युत मात्राओं को मानक रूप में सामान्यीकृत किया जाता है। 2.रैखिक प्रतिबद्ध वह स्थिति होती है, जिसमें विद्युत परिपथ में वोल्टेज और करंट के बीच एक सरल और स्थिर अनुपात होता है, और यह ओम के नियम का पालन करता है। NOTE(8) चुंबकीय फ्लक्स वह माप है जो यह बताता है कि एक चुंबकीय क्षेत्र (Magnetic Field) एक विशेष क्षेत्र से कितनी मात्रा में गुजर रही है। इसे चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता और उस क्षेत्र में क्षेत्रफल के गुणनफल के रूप में व्यक्त किया जाता है। इसे Φ B प्रदर्शित किया जाता है और इसका माप वेबर्स (Weber) में होता है। चुंबकीय फ्लक्स का सूत्र: चुंबकीय फ्लक्स (Φ𝐵को गणना करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का उपयोग किया जाता है: Φ𝐵=B⋅A⋅cos(θ) Φ B = चुंबकीय फ्लक्स,𝐵B = चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता ,A = क्षेत्र का क्षेत्रफल,θ = चुंबकीय क्षेत्र और क्षेत्रफल के आकार के बीच कोण NOTE(8)स्थाई धारा वह प्रकार की धारा है जो एक निश्चित दिशा में निरंतर प्रवाहित होती रहती है। इसका प्रवाह समय के साथ समान रहता है और इसकी तीव्रता में कोई परिवर्तन नहीं होता है। स्थायी धारा में विद्युत आवेश हमेशा एक ही दिशा में प्रवाहित होते हैं, जो इसके प्रवाह को स्थिर और निरंतर बनाता है। स्थायी धारा के लक्षण: 1.एक दिशा में प्रवाह: स्थायी धारा का प्रवाह हमेशा एक ही दिशा में होता है, जो एक निश्चित स्थिर पॉली में होता है। इसका प्रवाह कभी भी दिशा में परिवर्तन नहीं करता, जो इसे स्थिर बनाता है। 2.तीव्रता में कोई परिवर्तन नहीं: स्थायी धारा की तीव्रता समय के साथ बदलती नहीं है। इसे किसी विशेष बिंदु पर हमेशा एक समान मापा जा सकता है। 3.वोल्टेज: स्थायी धारा में वोल्टेज भी स्थिर रहता है, इसका मतलब है कि धारा को संचालित करने वाली विद्युत् स्रोत की वोल्टेज भी समय के साथ नहीं बदलती है। उदाहरण: 1.बैटरी - बैटरियाँ जो हमारे दैनिक जीवन में उपयोग होती हैं, जैसे मोबाइल फोन की बैटरियाँ या टॉर्च की बैटरियाँ, ये सभी स्थायी धारा प्रदान करती हैं। 2.पावर सप्लाई यूनिट्स जो कंप्यूटर या इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को स्थिर वोल्टेज प्रदान करती हैं, वे भी स्थायी धारा उत्पन्न करती हैं स्थायी धारा का गणितीय रूप: स्थायी धारा के लिए ओम का नियम लागू होता है, जो निम्नलिखित रूप में व्यक्त किया जाता है: V=I⋅R V=वोल्टेज,I=धारा,⋅R=प्रतिरोध(यह समीकरण बताता है कि स्थायी धारा में वोल्टेज, धारा और प्रतिरोध के बीच सरल संबंध होता है) स्थायी धारा का महत्व: 1.इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में उपयोग: स्थायी धारा का उपयोग अधिकांश इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और सर्किटों में होता है, क्योंकि ये उपकरण स्थायी धारा पर कार्य करते हैं। 2.बैटरियाँ और аккумуляटर: बैटरियाँ और चार्जेबल बैटरियाँ स्थायी धारा उत्पन्न करती हैं, जो छोटे और बड़े उपकरणों को शक्ति प्रदान करती हैं। 3.सौर ऊर्जा प्रणालियाँ: सौर पैनल से उत्पन्न विद्युत भी स्थायी धारा के रूप में होती है, जिसे बाद में आवश्यक्ता अनुसार परिवर्तित किया जाता है (जैसे इन्वर्टर द्वारा)। स्थायी धारा और परिवर्तनशील धारा में अंतर: स्थायी धारा (DC): यह एक दिशा में स्थिर प्रवाहित होती है और इसकी तीव्रता समय के साथ बदलती नहीं है। परिवर्तनशील धारा (AC): यह समय के साथ दिशा बदलती रहती है और इसकी तीव्रता भी परिवर्तित होती रहती है। निष्कर्ष: स्थायी धारा (DC) वह विद्युत धारा होती है जो हमेशा एक ही दिशा में प्रवाहित होती है और इसकी तीव्रता में कोई बदलाव नहीं आता है। इसका उपयोग विभिन्न बैटरियों, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और अन्य विद्युत प्रणालियों में किया जाता है। NOTE(9) परावैद्युत पदार्थ से क्या तात्पर्य है यह चालक पदार्थ के किस प्रकार विभिन्नहै परावैद्युत पदार्थ(Dielectric Material) ऐसे पदार्थ होते हैं जो विद्युत धारा को प्रवाहित नहीं करते हैं, अर्थात् ये इन्सुलेटर्सहोते हैं। जब इन्हें विद्युत क्षेत्र के संपर्क में लाया जाता है, तो ये पदार्थ विद्युत क्षेत्र को प्रभावित कर सकते हैं, लेकिन इनसे विद्युत धारा का प्रवाह नहीं होता। इन पदार्थों का मुख्य गुण यह है कि ये विद्युत ऊर्जा को एकत्रित करने की क्षमता रखते हैं, और इन्हें मुख्य रूप से कंडेन्सरमें विद्युत ऊर्जा के भंडारण के लिए उपयोग किया जाता है। परावैद्युत पदार्थ की विशेषताएँ: 1. विद्युत धारा का संचालन नहीं करते: परावैद्युत पदार्थों में इलेक्ट्रॉनों की स्वतंत्रता नहीं होती, जिससे ये विद्युत धारा को प्रवाहित नहीं कर सकते। इन्हें **इन्सुलेटर्स** भी कहा जाता है। 2. विद्युत क्षेत्र को प्रभावित करते हैं: परावैद्युत पदार्थ विद्युत क्षेत्र के प्रभाव में आकर **ध्रुवित** (polarize) हो जाते हैं, यानी उनके अणु या अणु समूह विद्युत क्षेत्र के अनुसार व्यवस्थित होते हैं। इससे क्षेत्र में क्षेत्रीय परिवर्तन होता है। 3. ऊर्जा संचयन: ये पदार्थ विद्युत ऊर्जा को संग्रहित करने की क्षमता रखते हैं। उदाहरण के लिए, कंडेन्सर में एक परावैद्युत पदार्थ का उपयोग किया जाता है ताकि विद्युत ऊर्जा को जमा किया जा सके। 4. उदाहरण: कागज, ग्लास, रबड़, प्लास्टिक, तेल, और वॉटर वाष्प जैसे पदार्थ परावैद्युत होते हैं। परावैद्युत पदार्थ और चालक पदार्थ में अंतर: 1. धारा का संचरण**: चालक पदार्थ (Conductor): ये पदार्थ विद्युत धारा को प्रवाहित करने में सक्षम होते हैं। इन पदार्थों में इलेक्ट्रॉन स्वतंत्र रूप से चलते हैं, जो धारा के प्रवाह को संभव बनाते हैं। उदाहरण के रूप में तांबा, एल्यूमिनियम, स्वर्ण, चांदी आदि आते हैं। परावैद्युत पदार्थ (Dielectric)- ये पदार्थ विद्युत धारा को नहीं प्रवाहित करते हैं। इनके अणुओं के पास स्वतंत्र रूप से चलने के लिए कोई इलेक्ट्रॉन नहीं होते। 2. विद्युत क्षेत्र के प्रति प्रतिक्रिया: चालक पदार्थ: जब इन पदार्थों को विद्युत क्षेत्र के संपर्क में लाया जाता है, तो इनका आंतरिक विद्युत क्षेत्र बदलता नहीं है, क्योंकि इसमें मुक्त इलेक्ट्रॉन्स होते हैं जो विद्युत क्षेत्र को संतुलित कर सकते हैं। -परावैद्युत पदार्थ: ये पदार्थ विद्युत क्षेत्र के प्रभाव में आकर ध्रुवित हो जाते हैं, यानी उनके अणु या अणु समूह अपने विद्युत गुणों के अनुसार व्यवस्थित हो जाते हैं, लेकिन विद्युत धारा का प्रवाह नहीं होता। 3. कंडक्टिविटी (Conductivity)- चालक पदार्थ इनकी कंडक्टिविटी बहुत अधिक होती है क्योंकि इनमें स्वतंत्र इलेक्ट्रॉन होते हैं जो धारा के प्रवाह में मदद करते हैं। रावैद्युत पदार्थ- इनकी कंडक्टिविटी बहुत कम होती है या न के बराबर होती है, क्योंकि इन पदार्थों में कोई स्वतंत्र इलेक्ट्रॉन नहीं होते हैं। 4. उपयोग चालक पदार्थ: इनका उपयोग विद्युत तारों, सर्किटों और अन्य विद्युत उपकरणों में किया जाता है, जहां विद्युत धारा का संचालन आवश्यक होता है। रावैद्युत पदार्थ- इनका उपयोग इन्सुलेटर्स के रूप में, कंडेन्सर में ऊर्जा संचयन, और विद्युत क्षेत्र को नियंत्रित करने में किया जाता है। निष्कर्ष: परावैद्युत पदार्थ वह पदार्थ होते हैं जो विद्युत धारा का संचालन नहीं करते हैं, लेकिन वे विद्युत क्षेत्र के प्रभाव में आकर ध्रुवित हो जाते हैं। ये पदार्थ इन्सुलेटर की तरह कार्य करते हैं और इनका उपयोग विद्युत ऊर्जा के संचयन और सुरक्षा में किया जाता है। चालक पदार्थ इसके विपरीत होते हैं, जो विद्युत धारा का संचालन करते हैं और इन्हें विद्युत कंडक्टर के रूप में उपयोग किया जाता है। NOTE(10)गैस की प्रमेय लिखिए तथा इसे सिद्ध कीजिए- ग्वोअस का प्रमेय (Gauss's Theorem), जिसे ग्वोअस का विद्युत क्षेत्र प्रमेय (Gauss's Law for Electric Fields) भी कहा जाता है, एक महत्वपूर्ण प्रमेय है जो विद्युत क्षेत्र और विद्युत फ्लक्स के बीच के संबंध को स्पष्ट करता है। यह प्रमेय विद्युत क्षेत्र के स्रोतों को समझने में उपयोगी है और यह विद्युत क्षेत्र के गुणांक को परिभाषित करने में मदद करता है। ग्वोअस का प्रमेय: ग्वोअस का प्रमेय यह कहता है: "किसी बंद सतह के अंदर के समग्र विद्युत फ्लक्स का योगफल, उस सतह के अंदर स्थित कुल आवेश के अनुपाती होता है।" गणितीय रूप में, इसे इस प्रकार लिखा जा सकता है: ΦE=∮ S E⋅dA =Qenc/ϵ0 ΦE=बंद सतह S के लिए विद्युत फ्लक्स,∮ S E⋅dA =बंद सतह पर विद्युत क्षेत्र E का फ्लक्स,Qenc= बंद सतह 𝑆 के अंदर स्थित कुल आवेश, ϵ0= मुक्त स्थान का विद्युत गुणांक सिद्धांत: ग्वोअस के प्रमेय का सिद्धांत: 1.विद्युत फ्लक्स का मतलब है उस सतह से गुजरने वाले विद्युत क्षेत्र की कुल मात्रा। यह सामान्य रूप से उस सतह पर प्रति क्षेत्रफल विद्युत क्षेत्र की तीव्रता का योग होता है। 2.सतह पर क्षेत्र का मान यह बताता है कि विद्युत क्षेत्र और क्षेत्रफल तत्व के बीच कोणीय संबंध के कारण कितनी मात्रा में विद्युत क्षेत्र उस क्षेत्र से गुजर रहा है। 3.कुल आवेश ह आवेश है जो बंद सतह के भीतर स्थित होता है। अगर आप किसी क्यूब या गोले जैसे बंद क्षेत्र को लेते हैं, तो उस क्षेत्र के अंदर कुल आवेशों का योग ही इस सिद्धांत में प्रयोग होगा। 4.विद्युत क्षेत्र और फ्लक्स: 1.यदि बंद सतह के अंदर कोई आवेश नहीं है, तो उस क्षेत्र में विद्युत फ्लक्स शून्य होगा। 2.अगर कोई आवेश मौजूद है, तो उसका विद्युत क्षेत्र उस बंद सतह से बाहर जाता है या उसमें प्रवेश करता है, और उस फ्लक्स का मान कुल आवेश के अनुपाती होगा। सिद्धांत: 1.ग्वोअस का प्रमेय विद्युत क्षेत्र और आवेश के बीच संबंध को इस प्रकार स्थापित करता है कि किसी बंद सतह के अंदर के समग्र विद्युत फ्लक्स का योगफल उस सतह के अंदर स्थित आवेश के अनुपाती होता है। 2.इसका मतलब है कि अगर आप एक बंद सतह को कोई भी रूप दे दें (जैसे गोलाकार, घनाकार, आदि), तो उस सतह के अंदर के कुल आवेश को देखकर आप विद्युत फ्लक्स की गणना कर सकते हैं। सिद्ध करना: सिद्धांत के सिद्ध करने के लिए हम ओम के नियम और कूलोंब के कानून का उपयोग करते हैं। 1.कूलोंब का नियम: कूलोंब का नियम कहता है कि दो बिंदु आवेशों के बीच विद्युत बल उनके आवेशों के उत्पाद के अनुपाती और उनके बीच की दूरी के वर्ग के विपरीत अनुपाती होता है। 2.बंद सतह पर फ्लक्स: अब मान लीजिए हम एक बंद सतह (जैसे एक गोला) को किसी पॉइंट आवेश 𝑄के चारों ओर रखते हैं। जब यह आवेश उस गोले के केंद्र में होता है, तो हर बिंदु पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता समान होती है और इस क्षेत्र की दिशा गोले की सतह के बाहरी दिशा में होती है। इस स्थिति में, फ्लक्स को इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है: ΦE = E⋅A 3.आवेश के लिए फ्लक्स: कूलोंब का नियम कहता है कि किसी पॉइंट आवेश के द्वारा उत्पन्न विद्युत क्षेत्र 𝐸के साथ फ़्लक्स इस प्रकार होता है: E=1Q/4πϵ0r2 संपूर्ण फ्लक्स: अब इस फ्लक्स को बंद सतह 𝑆र समाकलित (integrate) किया जाता है, ताकि पूरे क्षेत्र से फ्लक्स का योग प्राप्त हो सके। इसका परिणाम होता है: ΦE=∮ SSE⋅dA=Qenc/ϵ0 यह परिणाम ग्वोअस के प्रमेय को सिद्ध करता है। यहाँ पर,∮ Sसे आशय है कि हम समग्र सतह पर विद्युत क्षेत्र का फ्लक्स जोड़ रहे हैं। निष्कर्ष: ग्वोअस का प्रमेय यह बताता है कि किसी भी बंद सतह के अंदर के समग्र विद्युत फ्लक्स का योगफल उस सतह के अंदर स्थित कुल आवेश के अनुपाती होता है, और यह सिद्धांत विद्युत क्षेत्रों के अध्ययन और विद्युत क्षेत्र के स्रोतों की पहचान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। NOTE(11)बायो सेवर्ट के नियम एक महत्वपूर्ण भौतिक सिद्धांत है जो चुंबकीय क्षेत्र के बारे में बताता है, जो एक धारा द्वारा उत्पन्न होता है। इस नियम के माध्यम से हम यह जान सकते हैं कि एक संकीर्ण धारा तत्व से उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र का माप कैसे किया जाता है। बायो-सेवर्ट का नियम: बायो-सेवर्ट का नियम यह कहता है कि एक लंबी धारा के किसी भी छोटे तत्व द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र उस तत्व के आकार, दिशा, और उसके पास के स्थान पर निर्भर करता है। इस नियम के अनुसार, यदि एक स्थिर धारा किसी पदार्थ से बह रही है, तो उस धारा तत्व द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र dB निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया जाता है: dB=μ0/4 π.I.dixr/r2 ​dB=चुंबकीय क्षेत्र का अवयव,𝜇0 = मुक्त स्थान का चुंबकीय गुणांक,𝐼 = धारा की तीव्रता,dl = धारा तत्व,r cap = उस बिंदु से धारा तत्व तक की दिशा का यूनिट वेक्टर ,r = धारा तत्व और उस बिंदु के बीच की दूरी बायो-सेवर्ट के नियम का सिद्धांत: बायो-सेवर्ट का नियम यह बताता है कि किसी छोटे धारा तत्व द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र का माप उस धारा तत्व की लंबाई और उसके द्वारा प्रवाहित हो रही धारा की मात्रा पर निर्भर करता है। 1.चुंबकीय क्षेत्र का वेक्टर dB उस धारा तत्व के वेक्टर dl और उस बिंदु से धारा तत्व तक की दिशा में स्थित r (दूरी) के अनुरूप उत्पन्न होता है। 2.चुंबकीय क्षेत्र का वेक्टर हमेशा धारा तत्व और उस बिंदु के स्थान के बीच के परस्पर लंबवत (perpendicular) दिशा में होता है। 3.इस समीकरण के माध्यम से, हम किसी भी बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र की गणना कर सकते हैं, जो एक धारा द्वारा उत्पन्न होता है। बायो-सेवर्ट का नियम का भौतिक अर्थ: 1.धारा तत्व और चुंबकीय क्षेत्र: यदि एक छोटा धारा तत्व dl एक बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है, तो यह चुंबकीय क्षेत्र उस बिंदु से धारा तत्व तक की दिशा में उत्पन्न होता है। यह चुंबकीय क्षेत्र dB की दिशा धारा तत्व के और उस बिंदु के बीच के परस्पर लंबवत होती है। 2.धारा की दिशा: यदि धारा𝐼किसी मार्ग के साथ प्रवाहित हो रही है, तो चुंबकीय क्षेत्र की दिशा बायो-सेवर्ट के नियम के अनुसार होती है। इसका निर्धारण दाहिने हाथ के नियम (Right-Hand Rule) से भी किया जा सकता है, जो कहता है कि यदि आप दाहिने हाथ की अंगुलियाँ धारा के दिशा में घुमाते हैं, तो अंगुलियों की दिशा चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को दिखाती है। बायो-सेवर्ट के नियम का उदाहरण: यदि हम एक सीधी धारा के लिए बायो-सेवर्ट के नियम का उपयोग करना चाहें, तो हम इसे इस प्रकार से देख सकते हैं: 1.यदि कोई लंबी धारा एक बिंदु से गुजर रही हो, तो हम बायो-सेवर्ट के नियम का उपयोग करके उस बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता की गणना कर सकते हैं। 2.मान लीजिए एक लंबी सीधी धारा 𝐼के चारों ओर एक बिंदु 𝑃है। इस बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र B का मान बायो-सेवर्ट के नियम से इस प्रकार होगा: B= μ0I/2πr(जहाँ 𝑟वह दूरी है बिंदु 𝑃और धारा के बीच।) ​निष्कर्ष: बायो-सेवर्ट का नियम चुंबकीय क्षेत्र को उत्पन्न करने वाली धारा के विश्लेषण के लिए एक महत्वपूर्ण और मूलभूत सिद्धांत है। यह हमें यह समझने में मदद करता है कि किसी धारा तत्व के कारण एक बिंदु पर उत्पन्न होने वाला चुंबकीय क्षेत्र किस प्रकार उस धारा तत्व, उसकी दिशा, और उस बिंदु की स्थिति पर निर्भर करता है। NOTE(12)विद्युत नेटवर्क की किरचॉफ के नियम लिखे तथा इन्हें समझाइए किर्चॉफ़ के नियम विद्युत परिपथों का विश्लेषण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये नियम दो प्रकार के होते हैं: किर्चॉफ़ का धारा नियम और किर्चॉफ़ का वोल्टेज नियम 1. किर्चॉफ़ का धारा नियम (Kirchhoff's Current Law - KCL) किर्चॉफ़ का धारा नियम कहता है: "किसी भी नोड (या जंक्शन) पर कुल धारा का योगफल शून्य होता है, यानी नोड में प्रवेश करने वाली धारा का योगफल नोड से बाहर जाने वाली धारा के योगफल के बराबर होता है।" गणितीय रूप में:∑I=0 I in = नोड में प्रवेश करने वाली धारा I out= नोड से बाहर जाने वाली धारा समझाइए: किसी विद्युत परिपथ में यदि एक बिंदु (नोड) होता है, तो उस बिंदु पर जितनी धारा प्रवेश करती है, उतनी ही धारा उस बिंदु से बाहर निकलती है। उदाहरण: यदि किसी नोड पर 3 एम्पियर धारा प्रवेश करती है और 2 एम्पियर धारा बाहर जाती है, तो उस नोड से 1 एम्पियर धारा बाहर निकलने के लिए होगी, ताकि कुल धारा का योग शून्य हो। 2. किर्चॉफ़ का वोल्टेज नियम (Kirchhoff's Voltage Law - KVL) किर्चॉफ़ का वोल्टेज नियम कहता है: "किसी भी बंद लूप या परिपथ में वोल्टेज का कुल योग शून्य होता है, यानी लूप के हर घटक (resistor, battery, etc.) द्वारा उत्पन्न वोल्टेज का योग शून्य होता है।" गणितीय रूप में: ∑V=0 ​जहाँ:V = वोल्टेज (Voltage)लूप में हर घटक द्वारा उत्पन्न वोल्टेज का योग शून्य होता है। समझाइए: यह नियम ऊर्जा संरक्षण के सिद्धांत पर आधारित है। किसी भी विद्युत परिपथ में ऊर्जा को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित किया जाता है, और कुल ऊर्जा (या वोल्टेज) लूप के अंतर्गत शून्य होती है। उदाहरण: यदि एक लूप में बैटरियाँ और प्रतिरोधक (resistor) जुड़े हैं, तो बैटरियों द्वारा प्रदान की गई वोल्टेज और प्रतिरोधक में गिरने वाली वोल्टेज का योग शून्य होगा। किर्चॉफ़ के नियमों का महत्व: 1.परिपथों का विश्लेषण: इन नियमों का उपयोग जटिल विद्युत परिपथों (complex circuits) को सरल बनाने और उनका विश्लेषण करने के लिए किया जाता है। इन नियमों के द्वारा हम किसी भी बिंदु पर धारा और किसी भी लूप में वोल्टेज को ज्ञात कर सकते हैं। 2.धारा और वोल्टेज का निर्धारण: जब हमें किसी परिपथ में धारा या वोल्टेज का मान नहीं पता होता, तो हम इन नियमों का उपयोग करके उन मानों का निर्धारण कर सकते हैं। 3.ऊर्जा संरक्षण: इन नियमों से हम ऊर्जा के संरक्षण को समझ सकते हैं, क्योंकि Kirchhoff's Current Law (KCL) और Kirchhoff's Voltage Law (KVL) दोनों ही ऊर्जा के संरक्षण के सिद्धांत पर आधारित होते हैं। उदाहरण: 1. किर्चॉफ़ का धारा नियम (KCL) का उदाहरण: मान लीजिए कि एक नोड पर तीन तार जुड़ी हैं: पहले तार में 5 A धारा प्रवेश करती है। दूसरे तार में 3 A धारा बाहर जाती है। तीसरे तार में 2 A धारा बाहर जाती है। तो KCL के अनुसार, नोड में प्रवेश करने वाली धारा और बाहर जाने वाली धारा का योग बराबर होना चाहिए:5A=3A+2A यह समीकरण संतुष्ट है, क्योंकि -5A=3A+2A 2. किर्चॉफ़ का वोल्टेज नियम (KVL) का उदाहरण: मान लीजिए एक लूप में एक बैटरी (12 V) और दो प्रतिरोधक (R1 = 4 Ω, R2 = 6 Ω) जुड़े हैं। धारा I को ज्ञात करना है।बैटरी में 12 V वोल्टेज उत्पन्न होती है। इस लूप में वोल्टेज की कुल राशि शून्य होनी चाहिए (KVL के अनुसार)।तो: 12V−(I⋅4Ω)−(I⋅6Ω)=0यहाँ I धारा को निकालने के लिए हम समीकरण को हल कर सकते हैं: इस प्रकार, लूप में धारा 𝐼=1.2AI=1.2A होगी।निष्कर्ष: किर्चॉफ़ के दोनों नियम - धारा नियम (KCL) और वोल्टेज नियम (KVL), विद्युत परिपथों के विश्लेषण में सहायक होते हैं और हमें जटिल परिपथों में धारा और वोल्टेज की गणना करने में मदद करते हैं। ये नियम ऊर्जा संरक्षण के सिद्धांत पर आधारित होते हैं और विद्युत सर्किटों के व्यवहार को समझने के लिए महत्वपूर्ण उपकरण हैं। इलेक्ट्रॉन गन किसे कहते हैं इसकी संरचना कार्य प्रणाली तथा प्रयोग समझाइए इलेक्ट्रॉन गन (Electron Gun) एक यांत्रिक उपकरण है जो उच्च-ऊर्जा वाले इलेक्ट्रॉनों को उत्पन्न करने और उन्हें नियंत्रित दिशा में प्रवाहित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह उपकरण विशेष रूप से इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप्स, कैथोड रे ट्यूब (CRT), और अन्य वैज्ञानिक उपकरणों में उपयोग किया जाता है। इलेक्ट्रॉन गन की संरचना (Structure of Electron Gun): इलेक्ट्रॉन गन में निम्नलिखित प्रमुख घटक होते हैं: कैथोड (Cathode): 1.यह एक नकारात्मक आवेश वाला इलेक्ट्रोड होता है जो उच्च तापमान पर गर्म किया जाता है। 2.गर्म होने पर, कैथोड से इलेक्ट्रॉन मुक्त होते हैं। इसे थर्मायोयनिक उत्सर्जन कहते हैं, जिसमें उच्च तापमान के कारण धातु से इलेक्ट्रॉन बाहर निकलते हैं। एनोड (Anode): 1.यह एक सकारात्मक आवेश वाला इलेक्ट्रोड होता है, जो कैथोड से निकलने वाले इलेक्ट्रॉनों को आकर्षित करता है। 2.एनोड इलेक्ट्रॉनों को तेज़ गति देने में मदद करता है और उन्हें गन के बाहर की दिशा में भेजता है। कंडीन्सर लेंस (Condenser Lenses): 1.ये लेंस इलेक्ट्रॉन बीम को संकेंद्रित करने का काम करते हैं, ताकि बीम को एक छोटे से स्थान पर केंद्रित किया जा सके। 2.कंडीन्सर लेंस के माध्यम से इलेक्ट्रॉन गन से निकलने वाले इलेक्ट्रॉनों को एक स्थान पर फोकस किया जाता है। फोकसिंग लेंस (Focusing Lenses): 1.ये लेंस इलेक्ट्रॉन बीम को एक बिंदु पर फोकस करने के लिए होते हैं, ताकि उसे सटीक रूप से नियंत्रित किया जा सके। इनका कार्य इलेक्ट्रॉन बीम के आकार को छोटा करना होता है। वैक्यूम ट्यूब (Vacuum Tube): 1.इलेक्ट्रॉन गन को सामान्यत: एक वैक्यूम ट्यूब में रखा जाता है, क्योंकि इलेक्ट्रॉन को किसी गैस से टकराने से उनकी गति में कमी आ सकती है और उनकी दिशा भी भटकी जा सकती है। गेट (Grid): 1.यह एक नियंत्रण गेट होता है जो कैथोड और एनोड के बीच में होता है। 2.यह इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह को नियंत्रित करता है, ताकि अधिक या कम इलेक्ट्रॉन गन से बाहर निकल सकें। इलेक्ट्रॉन गन का कार्यप्रणाली (Working of Electron Gun): थर्मायोयनिक उत्सर्जन: 1.सबसे पहले, कैथोड को गर्म किया जाता है, जिससे उसमें से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होते हैं। यह प्रक्रिया थर्मायोयनिक उत्सर्जन कहलाती है। 2.कैथोड से निकलने वाले इलेक्ट्रॉन कच्चे होते हैं, जिनकी ऊर्जा और दिशा नियंत्रित नहीं होती। इलेक्ट्रॉनों का त्वरित होना: 1.एनोड पर एक सकारात्मक विद्युत क्षेत्र लागू किया जाता है। इससे कैथोड से निकलने वाले इलेक्ट्रॉन एनोड की ओर आकर्षित होते हैं और तेजी से गति प्राप्त करते हैं। 2.एनोड का कार्य इलेक्ट्रॉनों को एक दिशा में गति देने का होता है। यह उन्हें उच्च वेग से गन के बाहर भेजता है। कंडीन्सर लेंस और फोकसिंग लेंस: 1.इलेक्ट्रॉन गन के भीतर कंडीन्सर लेंस और फोकसिंग लेंस होते हैं जो इलेक्ट्रॉन बीम को संकेंद्रित और फोकस करते हैं। 2.कंडीन्सर लेंस, इलेक्ट्रॉन बीम को एक स्थान पर एकत्र करते हैं, और फोकसिंग लेंस इलेक्ट्रॉन बीम को एक बिंदु पर फोकस करते हैं। इलेक्ट्रॉन बीम का उपयोग: 1.अब, तेजी से गति प्राप्त करते हुए इलेक्ट्रॉन गन से बाहर निकलते हैं। इन इलेक्ट्रॉनों को विभिन्न वैज्ञानिक उपकरणों, जैसे कि इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप और कैथोड रे ट्यूब (CRT) में उपयोग किया जाता है। इलेक्ट्रॉन गन के प्रयोग (Applications of Electron Gun): 1.इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप (Electron Microscope): I)इलेक्ट्रॉन गन का प्रमुख उपयोग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप में होता है, जहाँ यह उच्च ऊर्जा वाले इलेक्ट्रॉनों को उत्पन्न करता है। इलेक्ट्रॉन बीम के माध्यम से अत्यधिक छोटे आकार की वस्तुओं का अध्ययन किया जा सकता है। ll) इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का उपयोग जैविक कोशिकाओं, बैक्टीरिया, और अन्य सूक्ष्म संरचनाओं के अध्ययन के लिए किया जाता है। 2.कैथोड रे ट्यूब (CRT): पुराने टेलीविज़न और कंप्यूटर मॉनिटर में कैथोड रे ट्यूब (CRT) का उपयोग किया जाता है। इसमें इलेक्ट्रॉन गन से इलेक्ट्रॉन निकलते हैं और स्क्रीन पर एक फ्लोरोसेंट परत पर उनका प्रभाव पड़ता है, जिससे चित्र प्रदर्शित होते हैं। विभिन्न वैज्ञानिक उपकरण: 1.इलेक्ट्रॉन गन का उपयोग उच्च ऊर्जा वाली सूक्ष्मदर्शी, सैटेलाइट संचार, और अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स परीक्षणों में भी किया जाता है। लेज़र उत्पादन: 1.इलेक्ट्रॉन गन को लेज़र उपकरणों में भी उपयोग किया जाता है, जहाँ यह एक इलेक्ट्रॉन बीम उत्पन्न करता है जो एक विशिष्ट दिशा में मार्गदर्शित होता है। विकिरण उपचार (Radiation Therapy): 1.चिकित्सा क्षेत्र में, इलेक्ट्रॉन गन का उपयोग विकिरण उपचार में किया जाता है। उच्च ऊर्जा वाले इलेक्ट्रॉनों को कैंसर जैसी बीमारियों के उपचार में इस्तेमाल किया जा सकता है। निष्कर्ष: इलेक्ट्रॉन गन एक महत्वपूर्ण यांत्रिक उपकरण है जो इलेक्ट्रॉन बीम उत्पन्न करने में सक्षम होता है। इसकी संरचना में कैथोड, एनोड, कंडीन्सर लेंस, फोकसिंग लेंस, और वैक्यूम ट्यूब शामिल होते हैं। इसकी कार्यप्रणाली में इलेक्ट्रॉनों को उत्पन्न करना, त्वरित करना और फिर उन्हें नियंत्रित दिशा में भेजना होता है। इलेक्ट्रॉन गन का उपयोग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप, CRT और कई अन्य वैज्ञानिक उपकरणों में किया जाता है। ​